|
|
||
अजनबी कहें, के अपना
कहें
अब क्या कहें, क्या ना कहें इशारे भी चुप हैं, ज़ुबां ख़ामोश है सदा गुमसुम सी है, तन्हां आगोश है यारा रे, यारा रे क्यों फासलों में भी तू यारा रे यारा रे, यारा रे तू छूट कर, क्यों छूटा नहीं कुछ तो जुदा है अभी मैं टूट कर, क्यों टूटा नहीं जीने में है तू कहीं इशारे भी चुप हैं... यारा रे, यारा रे... है हर घड़ी, वो तिश्नगी जो एक पल भी ना बुझी है ज़िन्दगी चलती हुई पर ये ज़िन्दगी ही नहीं इशारे भी चुप हैं... यारा रे, यारा रे... |
विवरण :
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|||
|
|||
|
|
यारा रे - Yaara Re (KK, Roy)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment