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सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
जहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे नज़ारे अपनी मस्तियाँ, दिखा-दिखा के सो गये सितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गये हर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे सुहानी रात ढल... तड़प रहे हैं हम यहाँ, तुम्हारे इंतज़ार में खिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार में हवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे सुहानी रात ढल... |
विवरण :
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सुहानी रात ढल चुकी - Suhani Raat Dhal Chuki (Mohammad Rafi, Dulari)
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