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जिसे ज़िन्दगी ढूंढ रही है
क्या ये वो मकाम मेरा है यहाँ चैन से बस रुक जाऊं क्यूं दिल ये मुझे कहता है जज़्बात नये से मिले हैं जाने क्या असर ये हुआ है इक आस मिली फिर मुझको जो क़ुबूल किसी ने किया है किसी शायर की ग़ज़ल जो दे रूह को सुकूं के पल कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर नए मौसम की सहर या सर्द में दोपहर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर जैसे कोई किनारा, देता हो सहारा मुझे वो मिला किसी मोड़ पर कोई रात का तारा, करता हो उजाला वैसे ही रोशन करे वो शहर दर्द मेरे वो भुला ही गया कुछ ऐसा असर हुआ जीना मुझे फिर से वो सीखा रहा जैसे बारिश कर दे तर, या मरहम दर्द पर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर... मुस्काता ये चेहरा, देता है जो पहरा जाने छुपाता क्या दिल का समंदर औरों को तो हरदम साया देता है वो धूप में है खड़ा खुद मगर चोट लगी है उसे फिर क्यूं महसूस मुझे हो रहा दिल तू बता दे क्या है इरादा तेरा मैं परिंदा बेसबार, था उड़ा जो दरबदर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर... |
विवरण :
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श्रद्धा कपूर
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बंजारा / Banjaara
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