|
|
||
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का
काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई तू कौन है, तेरा नाम है क्या, सीता भी यहाँ बदनाम हुई फिर क्यूँ संसार की बातों से, भीग गये तेरे नैना कुछ तो लोग कहेंगे... हमको जो ताने देते हैं, हम खोए हैं इन रंगरलियों में हमने उनको भी छुप-छुपके, आते देखा इन गलियों में ये सच है झूठी बात नहीं, तुम बोलो ये सच है ना कुछ तो लोग कहेंगे... |
विवरण :
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
||
|
|
शर्मिला टैगोर
|
|
|
|
||
|
|||
|
|||
|
|
कुछ तो लोग कहेंगे / Kuch To Log Kahenge
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment