ये दिल तन्हा क्यूं रहे
क्यूं हम टुकड़ों में जिये क्यूं रूह मेरी ये सहेमैं अधूरा जी रहा हूँ हरदम ये कह रहा हूँ मुझे तेरी ज़रूरत है... अंधेरों से था मेरा रिश्ता बड़ा तूने ही उजालों से वाक़िफ़ किया अब लौटा मैं हूँ इन अंधेरों में फिर तो पाया है खुद को बेगाना यहाँ तन्हाई भी मुझसे खफा हो गयी बंजरों ने भी ठुकरा दिया मैं अधूरा जी रहा हूँ खुद पर ही इक सज़ा हूँ मुझे तेरी ज़रूरत है... तेरे जिस्म की वो खुशबुएं अब भी इन सांसों में ज़िंदा है मुझे हो रही इनसे घुटन मेरे गले का ये फंदा है तेरे चूड़ियों की वो खनक यादों के कमरे में गूँजे है सुनकर इसे, आता है याद हाथों में मेरे जंजीरें हैं तु ही आके इनको निकाल ज़रा कर मुझे यहाँ से रिहा मैं अधूरा जी रहा हूँ ये सदायें दे रहा हूँ मुझे तेरी ज़रूरत है... |
विवरण :
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श्रद्धा कपूर
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ज़रुरत / Zaroorat - ek villain
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