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मंज़िलों पे आ के लुटते, हैं दिलों
के कारवाँ
कश्तियाँ साहिल पे अक्सर, डूबती है प्यार की मंज़िलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह जब कदम ही साथ ना दे, तो मुसाफिर क्या करे यूं तो है हमदर्द भी और हमसफ़र भी है मेरा बढ़ के कोई हाथ ना दे, दिल भला फिर क्या करे डूबने वाले को तिनके का सहारा ही बहुत दिल बहल जाए फ़क़त इतना इशारा ही बहुत इतने पर भी आसमां वाला गिरा दे बिजलियाँ कोई बतला दे ज़रा ये डूबता फिर क्या करे मंजिलें अपनी जगह... प्यार करना जुर्म है तो, जुर्म हमसे हो गया काबिल-ए-माफी हुआ, करते नहीं ऐसे गुनाह तंगदिल है ये जहां और संगदिल मेरा सनम क्या करे जोश-ए-जुनूं और हौसला फिर क्या करे मंज़िलें अपनी जगह... |
विवरण :
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शराबी
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1984
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बप्पी लाहिरी
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अनजान
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किशोर कुमार
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अमिताभ बच्चन
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मंजिलें अपनी जगह हैं / Manzilein Apni Jagah hain
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