डोली में बिठाई के कहार - Doli Mein Bithai Ke



डोली में बिठाई के कहार लाए मोहे सजना के द्वार
डोली में बिठाई...
बीते दिन खुशियों के चार देके दुख मन को हजार
डोली में बिठाई...

मर के निकलना था घर से साँवरिया के जीते जी निकलना पड़ा
फूलों जैसे पाँवों में पड़ गए छाले रे काँटों पे जो चलना पड़ा
पतझड़, ओ बन गई पतझड़ बैरन बहार
डोली में बिठाई...

जितने हैं आँसू मेरी अँखियों में उतना नदिया में नाहीं रे नीर
ओ लिखनेवाले तूने लिख दी ये कैसी मेरी टूटी नैय्या जैसी तक़दीर
रुठा माझी, ओ माझी, रुठा माझी, उठे पतवार
डोली में बिठाई...

टूटा पहले मेरे मन अब चूड़ियाँ टूटीं हुए सारे सपने यूँ चूर
कैसा हुआ धोखा आया पवन का झोंका मिट गया मेरा सिंदूर
लुट गए, ओ रामा लुट गए, सोलह श्रृंगार
डोली में बिठाई...
विवरण :
:
अमर प्रेम 
:
1971
:
आर.डी.बर्मन
:
आनंद बख़्शी
:
एस.डी.बर्मन
:
शर्मिला टैगोर








No comments:

Post a Comment